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पृथक गोंडवाना राज्य की मांग को लेकर दिया धरना
नगरी (निप्र) । पृथक गोंडवाना राज्य मांग के १०० वर्ष पूर्ण होने पर वनग्राम संघर्ष समिति छत्तीसगढ़ द्वारा जनक्रांति शताब्दी समारोह के अवसर पर पृथक गोंडवाना राज्य निर्माण की मांग को लेकर अनुविभागीय अधिकारी राज्य आनंद मसीह को राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन सौंपने के पूर्व वनग्राम संघर्ष समिति छत्तीसगढ़ ने नगर के हृदयस्थल बजरंग चौक में धरना दिया।

सभा को संबोधित करते हुए वनग्राम संघर्ष समिति के संयोक मयाराम नागवंशी ने कहा कि पृथक गोंडवाना राज्य की मांग सर्वप्रथम १९११ में शुरू हुई थी, जिसे १०० साल पूरे हो गए हैं। फिर भी आज तक पृथक गोंडवाना राज्य की मांग पूरी नहीं हुई है।

इसकी वजह से फिर से पृथक गोंडवाना राज्य की मांग उठने लगी है। इस धरना में अखिल भारतीय आदिवासी विकास समिति अध्यक्ष सोपसिंह मंडावी, सुखराम नेताम, भानसिंह मरकाम, सोनऊराम नेताम, शशि धु्रव, अनिता धु्रव, फूलसिंह नेताम, कमला नेताम, डॉ. चैतराम कोर्राम, बंशीलाल श्रीमाली, तुलसी मंडावी, तुलाराम कोर्राम, हेमंत सलाम, अशोक साक्षी, सुरेश मरकाम, अशोक साक्षी, ओमप्रकाश नेताम, गौतम मरकाम, शिव कुमार, धनेश कुंजाम, श्रवण गोटा, सुखऊराम नेताम, नाधूराम नेताम, बसंत मरकाम, बालेश्वर मरकाम, रामप्यारी सहित बड़ी संख्या में वनग्राम संघर्ष समिति के सदस्य उपस्थित थे।







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Itihas ko janiye....
बात फरवरी 1835 की है। यह वह समय था जब अंग्रेज सम्पूर्ण भारत को अपना
गुलाम बनाने के लिये जी-तोड़ प्रयास कर रहे थे, तब लार्ड मैकाले,
जो इतिहासािर के साथ -साथ कुटिल राजनीतिज्ञ भी था,ने
ब्रिटिष पार्लियामेंट में ऐतिहासिक भाशण दिया था,
इसे कार्य वृत के रूप में सार्वजनिक किया गया।
यह ऐसा भाशण था,जिसे सदियों से हरे-भरे
भारतीय षिक्षा के वृ़क्ष पर भीशण
कुठाराघात किया।
मैकाले के षब्द थे....
         ‘‘मैैने भारत के कोने-कोने की यात्रा की है और मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति दिखाई नही दिया,जो भिखारी हो या चोर हो,मैने इस देष में ऐसी सम्पन्नता देखी,ऐसे उचे नैतिक मुल्य देखे,ऐसे योग्य व्यक्ति देखे,कि मुझे नही लगता कि जब तक हम इस देष की रीढ़ की हड्डी न तोड़ दें,तब तक हम इस देष को जीत पायेंगे और यह रीढ़ की हड्डी है-इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत। इसके लिये मेरा सुझाव है कि हमें इस देष की प्राचीन षिक्षा व्यवस्था को,इसकी संस्कृति को बदल देना चाहिये। यदि भारत यह सोचने लगे कि वह हर वस्तु जो विदेषी और अंग्रेजी है,उनकी अपनी वस्तु से अधिक श्रेश्ठ और महान है तो उनका आत्म गौरव,उनके मूल संस्कार नश्ट हो जायेंगे और तब वे वैसे बन जायेंगे जैसा हम उन्हे बनाना चाहते हैं-एक सच्चा गुलाम राश्ट्र’’।

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